पृथ्वी का इतिहास , History of earth as a planet - Hindivigyan

पृथ्वी में कभी होते थे शनि ग्रह की तरह छल्ले, History of earth as a planet


हमारे सौरमंडल का सबसे सुंदर अलग सा दिखाई देने वाले ग्रहों में से एक है शनि|और हम सब यह जानते हैं की शनि ग्रह के बहुत ही सुंदर छल्ले है जो शनि को सभी ग्रहों से अलग बनाता है । पर अगर आपको लगता है कि यह छल्ले हैं तो आप गलत सोचते हैं । दरसअल ये छल्ले नहीं बल्कि धूल और उल्का पिंडों के झुंड हैं ।
सन्दर्भ:- ब्रह्मांड की उत्पत्ति

शनि में आते हैं 1800 किलोमीटर की रफ्तार से तूफान

यह बात जानकर आपको आश्चर्य होगा कि शनि ग्रह पर 1800 किलोमीटर प्रति घंटे से तूफान चलते रहते हैं । और शनि ग्रह किसी तारे या ग्रह के निर्माण होने की स्थिति का जीता जागता उदाहरण है ।
जब कोई ग्रह निर्माण की स्थिति में होता है तो उसका आकार और ढांचा शनि ग्रह से मिलता जुलता रहता है | अर्थात शनि ग्रह वैज्ञानिकों के लिए एक अंतरिक्ष के शोध की आधार शिला है |


जब पृथ्वी का निर्माण हो रहा था उस समय शनि ग्रह की तरह ही पृथ्वी में छल्ले होते थे | परन्तु कुछ समय बाद यह छल्ले चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से चंद्रमा में मिल गए और गायब हो गए |

वर्तमान समय से पहले पृथ्वी का बड़ा था लेकिन एक अनाथ ग्रह आकार पृथ्वी से टकरा गया था जिससे चंद्रमा के रूप में एक बड़ा टुकड़ा पृथ्वी से अलग हो गया |

पृथ्वी से अलग होकर उस टुकड़े ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति में बंध कर पृथ्वी के चक्कर लगाना शुरू कर दिया था और पृथ्वी के छल्ले को अपनी गुरुत्वाकर्षण से उन्हें अवशोषित कर लिया जिससे छल्लों का अस्तित्व ख़त्म हो गया |

जैसा कि हम जानते हैं कि किसी भी ग्रह और तारे का निर्माण गैस और धूल के बने मलबे से होता है और जब कोई ग्रह निर्माण की स्थिति में होता है तो उसमें स्थित सभी कण आपस में चिपकने लगते है और एक दूसरे को अणुओं से मिलकर एक ठोस ढांचा तैयार करते हैं ।

यही ठोस ढांचा अपने अंदर स्थित रासायनिक क्रिया से यह तय करता है कि वह तारा होगा या ग्रह ।

किसी भी सौरमंडल का निर्माण होने से पहले तारे का निर्माण होता है जो सबसे अधिक घनत्व वाले कणों से निर्मित होता है । घनत्व अधिक होने पर ऊर्जा अधिक पैदा होती है और तारा जलने लगता है और तीव्र ऊष्मा के साथ एक अत्यंत तेजी से चमकते पिंड का रूप ले लेता है ।


फिर जो कम घनत्व वाले कण होते हैं वे ग्रहों और छोटे पिंडों का निर्माण करते हैं । जैसे कि ग्रह, उल्का पिंड, चांद आदि ।

किसी ग्रह का गुरुत्वाकर्षण और घनत्व निर्धारित करता है की आकार और प्रकार के अनुसार उसके कितने और कैसे चंद्रमा होंगे । पृथ्वी के छल्ले चंद्रमा में मिलने का सबसे बड़ा कारण था छल्लों की परिपथ पर घूमने की गति ।

अभी भी आप शनि ग्रह पर छल्लों की को देख सकते हैं । और शनि ग्रह के छल्ले एक प्रश्न उठाते हैं कि आखिर क्यों ये छल्ले अभी भी मौजूद हैं ?

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पृथ्वी के छल्ले खत्म हो गए लेकिन शनि पर अभी क्यों मौजूद हैं वे छल्ले

जाहिर सी बात है कि हर किसी के मन में यह बात जरूर आती होगी कि आखिर क्यों शनि में छल्ले मौजूद हैं । ऐसा इस लिए है क्योंकि इतिहास में पृथ्वी में जो छल्ले थे वे पृथ्वी के घूर्णन गति से कम गति में घूमते थे ।

 परन्तु शनिग्रह पर पाए जाने वाले छल्ले आज भी उपस्थित हैं तो इसका कारण है छल्लों का शनि ग्रह के इर्दगिर्द तेजी से घूमना | जैसे कोई खड़ी साइकिल गिर जाती है लेकिन चलती हुई साइकिल नहीं गिरती |

ठीक उसी तरह पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाने के वजह से एक विशेष परिपथ में बंधी हुई है और अपने अक्ष और परिपथ से इधर उधर हिलती नहीं है | वैसे ही तेजीसे घुमने के वजह से शनि के छल्ले भी शनि के अन्दर नहीं समाते |


    पृथ्वी के छल्ले आज से करीब 10 करोड़ साल पहले ख़त्म हो गए | वैज्ञानिकों के अनुसार एक कारण यह भी था की डायनासोर के प्रजाति के ख़त्म होने के समय जब भयंकर उल्का वृष्टि हुई थी तब ये छल्ले उन उल्काओं के गुरुत्वाकर्षण के साथ या तो पृथ्वी में खिंच गए या फिर उन उल्काओं के साथ पृथ्वी की परिधि से बाहर चले गए |

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