मित्रों इस पोस्ट में आप पृथ्वी के बारे में ऐसे रोचक तथ्य जानेंगे जो शायद ही कहीं जानने को मिलेंगे । इस पोस्ट में हम जानेंगे, पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ, पृथ्वी क्या है, पृथ्वी की शुरुआत कैसे हुई, पृथ्वी की रचना और उत्पत्ति कैसे हुई , पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म कैसे हुआ आदि ।
हालांकि पृथ्वी के विषय में पहले से ही एक पोस्ट हमारे ब्लॉग पर उपलब्ध है जिसका लिंक पर क्लिक करके आप इसके विषय में विस्तार से पढ़ सकते हैं ।
अगर ये ग्रह न होता तो आज हम भी जिंदा न होते । हमारे सौरमंडल में सारे नौ ग्रह अपनी अपनी गुण के लिए जाने जाते हैं । आज हम बात करेंगे पृथ्वी के बारे में कुछ गजब के तथ्यों को लेकर ।
हमने अपने पिछले पोस्ट्स में बताया था कि ब्रह्मांड का जन्म एक बेहद भयंकर धमाके से हुआ था, पोस्ट को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें ।
बिग बैंग के बाद ये ब्रह्मांड बेहद तेजी से फैला जिसकी गति प्रकाश से भी तेज मानी जाती है । विस्फोट के बाद बेहद तेज गति से हाइड्रोजन, हीलियम जैसे पदार्थ के बादल इस ब्रह्मांड में तेजी से फैल गए ।
पदार्थ के प्रत्येक कण में अपनी एक ऊर्जा होती है जिसे गुरुत्व ऊर्जा कहते हैं, ये ऊर्जा शून्य में प्रत्येक कण को आपस में आकर्षित करती है ।
ऐसे में प्रत्येक कण आकर्षित होकर एक ठोस पदार्थ का रूप लेने लगता है । जो सबसे भारी पदार्थ थे वे आपस में जुड़कर तारों का निर्माण करते हैं और कम घनत्व वाले पदार्थ मिलकर चट्टानों का अर्थात ग्रहों का निर्माण करते हैं ।
पृथ्वी भी एक चट्टानों वाला ग्रह है । पर निर्माण के समय तक इस ग्रह में कुछ भी सामान्य नहीं था । हर तरफ लावा और ज्वालामुखी जैसे उथल पुथल वाली घटनाएं होती थी ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के फ्यूज़न से इस ग्रह में पानी आया था जो उल्काओ द्वारा लाया गया था । इसके अतिरिक्त एक थ्योरी के अनुसार इस ग्रह में ही अभिक्रिया हुई और फलस्वरूप लाखों वर्षों तक वर्षा होती रही ।
बिग बैंग के बाद अंतरिक्ष में फैले बेहद घने धूल के बादल में सबसे अधिक घनत्व वाले पदार्थों ने मिलकर तारे का निर्माण किया जो आज हम सूर्य के रूप में देखते हैं ।
एक बड़े आकार के तारे के निर्माण होने से बाकी का बचा हुआ dust cloud यानी धूल के बादल इसके चारों तरफ तेजी से चक्कर लगाने लगे और इस तरह डस्ट क्लाउड पार्टिकल्स यानी धूल के बादलों के कण आपस में जुड़ने लगे और इस तरह सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों का निर्माण होने लगा ।
इसका प्रारूप बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण भी किया था जिसमें वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आउटर स्पेस में जाकर शून्य गुरुत्वाकर्षण बल में एक परखनली में नमक के कुछ टुकड़ों को लेकर तेजी से परखनली को हिलाया और उन कणों में घर्षण पैदा किया ।
फलस्वरूप यह परिणाम देखा गया कि वे सारे नमक के कण आपस में चिपकने लगे और एक पिंड का रूप बना लिया । हालांकि उनके अणु स्तरपर आपस में जुड़ना नहीं हुआ क्योंकि ऐसा तब होता है जब कोई पदार्थ अपने गलनांक ( melting point ) की स्थिति वाले तापमान में हो ।
पृथ्वी के निर्माण के समय होने वाले घर्षण बल के कारण पदार्थ में ऊष्मा का बहुत तेजी से उत्पादन हुआ और फल स्वरूप भारी पदार्थ जैसे निकेल और लोहा सबसे आंतरिक भाग में इकट्ठा हो गया ।
विभिन्न प्रकार के पदार्थों का डस्ट क्लाउड के माध्यम से पृथ्वी पर इकट्ठे हुए । और आज जो आप पृथ्वी का स्वरूप देख रहे हैं वह करोड़ों वर्षों की प्रक्रिया का परिणाम है ।
पृथ्वी पर शुरुआत के समय जीवन होने की कोई भी संभावना नहीं थी । क्योंकि यह आग का एक धधकता गोला हुआ करती थी और हर तरफ ज्वालामुखी और बहता हुआ बेहद गर्म लावा हुआ करता था ।
ब्रह्मांड में तैरता हुआ डस्ट क्लाउड धीरे धीरे पत्थर के टुकड़ों , जिन्हें एस्टेरोइड या उल्का पिंड कहते हैं , इनमें परिवर्तित हो रहा था । आज भी ये एस्टेरोइड मंगल और ब्रहस्पति ग्रह के बीच में तैरते रहते हैं जिन्हें एस्टेरोइड बेल्ट के नाम से जाना जाता है ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ये एस्टेरोइड ही पानी लेकर धरती पर आए थे । और इसके बाद ही पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई थी ।
पानी में सबसे पहले एक कोशिकाओं वाले प्राणियों का जन्म हुआ था और फिर सरीसृपों का और विकास के चलते अन्य प्राणी भी इस पृथ्वी पर अवतरित हुए ।
पृथ्वी गोल क्यों है , ये प्रश्न अधिकतर लोग सोचते हैं । हालांकि पृथ्वी ही नहीं बल्कि हर ग्रह गोल है । और इसका कारण है गुरुत्वाकर्षण ।
जितने भी भारी धातुएं हैं वे सब हल्के धातुओं से नीचे चले जाते हैं जब ये तरल अवस्था में होते हैं । जैसे कि अगर आप पानी में सरसों का तेल डालते हैं तो वह नीचे बैठ जाता है ।
इसी प्रकार प्राथमिक अवस्था में पृथ्वी पर सभी पदार्थ तरल रूप में रहते थे, ऐसे में जो भारी धातुएं थीं वे सब इसके मध्य में चली गईं और जैसे जैसे पदार्थों की उपस्थिति बढ़ती गयी पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण भी बढ़ता चला गया ।
पृथ्वी के केंद्र से पृथ्वी या किसी भी ग्रह के हर भाग में बराबर मात्रा में गुरुत्वाकर्षण काम करता है और इससे ये ग्रह के सभी मैटर या पदार्थ को अपनी ओर खींच लेता है । फल स्वरूप ग्रहों का आकार गोल हो जाता है ।
पृथ्वी को उसका नीला रंग पानी के कारण मिला है । समुद्र में भरे असीम सागर में जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो वह परावर्तित होकर आसमान में चला जाता है ।
पृथ्वी का वातावरण इस नीले रंग को परावर्तित करता है और पृथ्वी हमें नीले रंग की दिखने लगती है ।
पिछले कुछ दशकों में दुनियाभर के कई देशों ने अंतरिक्ष पर अपनी खोज के स्तर को बहुत आगे तक ले गए हैं ।
1957 वह वर्ष था जब मनुष्य ने अपने किसी यान को अंतरिक्ष में भेजने का प्रयास किया था । और आज अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में भेजना उतना जटिल नहीं रहा ।
आउटर स्पेस यानी बाह्य अंतरिक्ष में जाने के लिए पृथ्वी के वायुमंडल और गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए किसी यान को 11 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से बाहर निकलना पड़ता है । यानी घण्टे में उसकी रफ्तार 40270 किलोमीटर प्रति घण्टा होनी चाहिए ।
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हालांकि पृथ्वी के विषय में पहले से ही एक पोस्ट हमारे ब्लॉग पर उपलब्ध है जिसका लिंक पर क्लिक करके आप इसके विषय में विस्तार से पढ़ सकते हैं ।
परिचय :- पृथ्वी क्या है ? What is earth in hindi ?
इस बात में कोई दो राय नहीं कि हम अपने इस प्यारे से नीले ग्रह को बेहद प्यार करते हैं, आखिर करें भी क्यों न , इसके बिना हमारा कोई अस्तित्व है ही नहीं ।अगर ये ग्रह न होता तो आज हम भी जिंदा न होते । हमारे सौरमंडल में सारे नौ ग्रह अपनी अपनी गुण के लिए जाने जाते हैं । आज हम बात करेंगे पृथ्वी के बारे में कुछ गजब के तथ्यों को लेकर ।
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पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ ? How did earth form ?
हमने अपने पिछले पोस्ट्स में बताया था कि ब्रह्मांड का जन्म एक बेहद भयंकर धमाके से हुआ था, पोस्ट को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें ।
बिग बैंग के बाद ये ब्रह्मांड बेहद तेजी से फैला जिसकी गति प्रकाश से भी तेज मानी जाती है । विस्फोट के बाद बेहद तेज गति से हाइड्रोजन, हीलियम जैसे पदार्थ के बादल इस ब्रह्मांड में तेजी से फैल गए ।
पदार्थ के प्रत्येक कण में अपनी एक ऊर्जा होती है जिसे गुरुत्व ऊर्जा कहते हैं, ये ऊर्जा शून्य में प्रत्येक कण को आपस में आकर्षित करती है ।
ऐसे में प्रत्येक कण आकर्षित होकर एक ठोस पदार्थ का रूप लेने लगता है । जो सबसे भारी पदार्थ थे वे आपस में जुड़कर तारों का निर्माण करते हैं और कम घनत्व वाले पदार्थ मिलकर चट्टानों का अर्थात ग्रहों का निर्माण करते हैं ।
पृथ्वी भी एक चट्टानों वाला ग्रह है । पर निर्माण के समय तक इस ग्रह में कुछ भी सामान्य नहीं था । हर तरफ लावा और ज्वालामुखी जैसे उथल पुथल वाली घटनाएं होती थी ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के फ्यूज़न से इस ग्रह में पानी आया था जो उल्काओ द्वारा लाया गया था । इसके अतिरिक्त एक थ्योरी के अनुसार इस ग्रह में ही अभिक्रिया हुई और फलस्वरूप लाखों वर्षों तक वर्षा होती रही ।
पृथ्वी कैसे अस्तित्व में आई ? How did earth came to existence?
बिग बैंग के बाद अंतरिक्ष में फैले बेहद घने धूल के बादल में सबसे अधिक घनत्व वाले पदार्थों ने मिलकर तारे का निर्माण किया जो आज हम सूर्य के रूप में देखते हैं ।
एक बड़े आकार के तारे के निर्माण होने से बाकी का बचा हुआ dust cloud यानी धूल के बादल इसके चारों तरफ तेजी से चक्कर लगाने लगे और इस तरह डस्ट क्लाउड पार्टिकल्स यानी धूल के बादलों के कण आपस में जुड़ने लगे और इस तरह सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों का निर्माण होने लगा ।
इसका प्रारूप बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण भी किया था जिसमें वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आउटर स्पेस में जाकर शून्य गुरुत्वाकर्षण बल में एक परखनली में नमक के कुछ टुकड़ों को लेकर तेजी से परखनली को हिलाया और उन कणों में घर्षण पैदा किया ।
फलस्वरूप यह परिणाम देखा गया कि वे सारे नमक के कण आपस में चिपकने लगे और एक पिंड का रूप बना लिया । हालांकि उनके अणु स्तरपर आपस में जुड़ना नहीं हुआ क्योंकि ऐसा तब होता है जब कोई पदार्थ अपने गलनांक ( melting point ) की स्थिति वाले तापमान में हो ।
पृथ्वी के निर्माण के समय होने वाले घर्षण बल के कारण पदार्थ में ऊष्मा का बहुत तेजी से उत्पादन हुआ और फल स्वरूप भारी पदार्थ जैसे निकेल और लोहा सबसे आंतरिक भाग में इकट्ठा हो गया ।
विभिन्न प्रकार के पदार्थों का डस्ट क्लाउड के माध्यम से पृथ्वी पर इकट्ठे हुए । और आज जो आप पृथ्वी का स्वरूप देख रहे हैं वह करोड़ों वर्षों की प्रक्रिया का परिणाम है ।
अन्य पोस्ट :-
पृथ्वी पर जीवन कैसे आया था ? How did life came to existence on earth ?
पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म कैसे हुआ ?पृथ्वी पर शुरुआत के समय जीवन होने की कोई भी संभावना नहीं थी । क्योंकि यह आग का एक धधकता गोला हुआ करती थी और हर तरफ ज्वालामुखी और बहता हुआ बेहद गर्म लावा हुआ करता था ।
ब्रह्मांड में तैरता हुआ डस्ट क्लाउड धीरे धीरे पत्थर के टुकड़ों , जिन्हें एस्टेरोइड या उल्का पिंड कहते हैं , इनमें परिवर्तित हो रहा था । आज भी ये एस्टेरोइड मंगल और ब्रहस्पति ग्रह के बीच में तैरते रहते हैं जिन्हें एस्टेरोइड बेल्ट के नाम से जाना जाता है ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ये एस्टेरोइड ही पानी लेकर धरती पर आए थे । और इसके बाद ही पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति हुई थी ।
पानी में सबसे पहले एक कोशिकाओं वाले प्राणियों का जन्म हुआ था और फिर सरीसृपों का और विकास के चलते अन्य प्राणी भी इस पृथ्वी पर अवतरित हुए ।
पृथ्वी या ग्रह गोल क्यों है ? Why is earth in spherical shape ?
पृथ्वी गोल क्यों है , ये प्रश्न अधिकतर लोग सोचते हैं । हालांकि पृथ्वी ही नहीं बल्कि हर ग्रह गोल है । और इसका कारण है गुरुत्वाकर्षण ।
जितने भी भारी धातुएं हैं वे सब हल्के धातुओं से नीचे चले जाते हैं जब ये तरल अवस्था में होते हैं । जैसे कि अगर आप पानी में सरसों का तेल डालते हैं तो वह नीचे बैठ जाता है ।
इसी प्रकार प्राथमिक अवस्था में पृथ्वी पर सभी पदार्थ तरल रूप में रहते थे, ऐसे में जो भारी धातुएं थीं वे सब इसके मध्य में चली गईं और जैसे जैसे पदार्थों की उपस्थिति बढ़ती गयी पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण भी बढ़ता चला गया ।
पृथ्वी के केंद्र से पृथ्वी या किसी भी ग्रह के हर भाग में बराबर मात्रा में गुरुत्वाकर्षण काम करता है और इससे ये ग्रह के सभी मैटर या पदार्थ को अपनी ओर खींच लेता है । फल स्वरूप ग्रहों का आकार गोल हो जाता है ।
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पृथ्वी नीली क्यों है ? Why earth is blue ?
पृथ्वी को उसका नीला रंग पानी के कारण मिला है । समुद्र में भरे असीम सागर में जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो वह परावर्तित होकर आसमान में चला जाता है ।
पृथ्वी का वातावरण इस नीले रंग को परावर्तित करता है और पृथ्वी हमें नीले रंग की दिखने लगती है ।
हम पृथ्वी से बाहर कैसे निकल सकते हैं ? How can we eascap from earth ?
मनुष्य के इतिहास में 20वीं और 21वीं शताब्दी विज्ञान के दृष्टिकोण से बहुत ही उपयोगी रही हैं ।पिछले कुछ दशकों में दुनियाभर के कई देशों ने अंतरिक्ष पर अपनी खोज के स्तर को बहुत आगे तक ले गए हैं ।
1957 वह वर्ष था जब मनुष्य ने अपने किसी यान को अंतरिक्ष में भेजने का प्रयास किया था । और आज अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष में भेजना उतना जटिल नहीं रहा ।
आउटर स्पेस यानी बाह्य अंतरिक्ष में जाने के लिए पृथ्वी के वायुमंडल और गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए किसी यान को 11 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से बाहर निकलना पड़ता है । यानी घण्टे में उसकी रफ्तार 40270 किलोमीटर प्रति घण्टा होनी चाहिए ।
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